श्री कृष्ण, जिन्हें विश्व में प्रेम, करुणा और भक्ति के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, उनकी कथाएँ आज भी हर भक्त के हृदय को आलोकित करती हैं। उनकी लीलाएँ केवल कथाएँ नहीं, बल्कि जीवन के गहन दर्शन और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत हैं। आइए, हम आपको ले चलें भगवान श्री कृष्ण की उस पावन यात्रा पर, जो प्रेम और भक्ति की अनमोल मिसाल है।
जन्म: एक दैवीय अवतार की शुरुआत
मथुरा की उस अंधेरी रात में, जब कंस का अत्याचार अपने चरम पर था, भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। माता देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में उनका जन्म कारागार में हुआ। लेकिन क्या प्रभु को बंधन बाँध सकता है? उस रात, जब मूसलाधार बारिश हो रही थी, दैवीय शक्ति ने कारागार के ताले खोल दिए, और वासुदेव अपने नवजात पुत्र को टोकरी में रखकर यमुना पार गोकुल पहुँचे।
यशोदा और नंद बाबा के घर कृष्ण का पालन-पोषण हुआ। यहाँ से शुरू होती है उनकी लीलाओं की वह कहानी, जो हर भक्त के मन को मोह लेती है।
बाल लीलाएँ: माखन चोर का मधुर स्वरूप
गोकुल में छोटे-से कन्हैया की लीलाएँ ऐसी थीं कि हर गोपी और ग्वाला उनके दीवाने हो गए। माखन चोर के रूप में उनकी शरारतें आज भी हर भक्त के चेहरे पर मुस्कान लाती हैं। माता यशोदा का डाँटना, फिर भी कन्हैया का मासूमियत भरा जवाब देना—यह सब कितना मनोरम था!
एक बार जब यशोदा माँ ने कन्हैया को माखन चुराते पकड़ लिया, तो उन्होंने उसे ओखली से बाँध दिया। लेकिन क्या प्रभु को कोई बाँध सकता है? कुबेर के दो पुत्र नारद मुनि जी के अपमान करने की वजह से श्राप पाकर वृक्ष बन जाते हैं, तो वो दोनो वृक्ष वही औखल के पास होते हैं तो कन्हैया उन्हें मुक्त कर देते हैं और देव लोक भेज देते हैं। यह लीला केवल शरारत नहीं, बल्कि प्रभु की दैवीय शक्ति का प्रतीक थी।

कंस का वध: अधर्म पर धर्म की विजय
कंस, जो अपनी बहन देवकी और भगवान श्री कृष्ण का कट्टर शत्रु था, ने कई बार कृष्ण को मारने की कोशिश की। लेकिन हर बार, कन्हैया ने अपनी बुद्धि और शक्ति से कंस के राक्षसों का अंत किया। पूतना, तृणावर्त, और बकासुर जैसे राक्षसों का वध करते हुए श्री कृष्ण ने दिखाया कि धर्म की रक्षा के लिए प्रभु स्वयं अवतरित होते हैं।
अंततः, जब श्री कृष्ण ने कंस का वध किया, तो मथुरा में धर्म की पुनर्स्थापना हुई। यह क्षण हर भक्त के लिए प्रेरणा है कि सत्य और प्रेम हमेशा विजयी होता है।
राधा-कृष्ण का प्रेम: अनंत और शाश्वत
श्री कृष्ण की कहानी अधूरी है बिना श्री राधा रानी के। श्री राधा और श्री कृष्ण का प्रेम केवल सांसारिक नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा का मिलन है। वृंदावन की कुञ्ज गलियों में, यमुना के तट पर, और रासलीला के मधुर क्षणों में श्री राधा-श्री कृष्ण का प्रेम हर भक्त के हृदय को छू जाता है।
श्री राधा का श्री कृष्ण के प्रति समर्पण और श्री कृष्ण का श्री राधा के लिए अनन्य प्रेम भक्ति का वह स्वरूप है, जो हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग और विश्वास में निहित है।
गीता का उपदेश: जीवन का दर्शन
जब पांडव और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध शुरू हुआ, तो श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने। कुरुक्षेत्र के मैदान में, जब अर्जुन धर्म और कर्तव्य के द्वंद्व में फँसे, तब श्री कृष्ण ने भगवद गीता का उपदेश दिया। यह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवजाति के लिए जीवन का मार्गदर्शन है।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”—इस श्लोक में कृष्ण ने हमें निष्काम कर्म का महत्व बताया। गीता का हर श्लोक भक्तों के लिए प्रेरणा और आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है।
कृष्ण का संदेश: प्रेम और भक्ति का मार्ग
श्री कृष्ण की कहानी केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। उनकी हर लीला हमें सिखाती है कि प्रेम, करुणा, और भक्ति के बिना जीवन अधूरा है। चाहे वह माखन चुराने की शरारत हो, श्री राधा के साथ प्रेम का अमर गीत हो, या गीता का उपदेश—श्री कृष्ण का हर रूप हमें जीवन जीने की कला सिखाता है।
आज भी, जब कोई भक्त “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का जाप करता है, तो उसका हृदय प्रभु के प्रेम से भर जाता है। कृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, प्रभु का नाम और उनकी भक्ति हमें हर संकट से पार कर सकती है।

निष्कर्ष: कृष्ण के चरणों में समर्पण
श्री कृष्ण की कहानी हर भक्त के लिए एक प्रेरणा है। उनकी लीलाएँ हमें सिखाती हैं कि जीवन में सच्चाई, प्रेम और भक्ति ही सबसे बड़ा धन है। तो आइए, हम सब मिलकर प्रभु श्री कृष्ण के चरणों में अपने मन को समर्पित करें और उनके प्रेम में डूब जाएँ।
जय श्री कृष्ण!
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