सीरियल किलर चंद्रकांत झा की कहानी दिल्ली के इतिहास में एक काले अध्याय की तरह दर्ज है। उसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि यह वह शख्स है जिसने न केवल कई लोगों की निर्मम हत्या की, बल्कि तिहाड़ जेल के बाहर शवों के टुकड़े फेंककर पुलिस को खुली चुनौती दी। यह कहानी सस्पेंस, थ्रिलर और मानव मन की गहरी अंधेरी गलियों का एक खौफनाक मिश्रण है। आइए, इस सीरियल किलर की कहानी को विस्तार से जानते हैं, जो दिल्ली का कसाई के नाम से कुख्यात हुआ।
शुरुआती जीवन: एक साधारण इंसान का अंधेरा रास्ता
चंद्रकांत झा का जन्म 1967 में बिहार के मधेपुरा जिले के एक छोटे से गांव, घोषई में हुआ था। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता था, और उसका प्रारंभिक जीवन रहस्यों से भरा हुआ है। 1990 में वह बेहतर रोजगार की तलाश में दिल्ली आया और आजादपुर मंडी के पास रहकर सब्जी बेचने और मजदूरी करने लगा। वह दिल्ली के साप्ताहिक बाजारों में फेरीवाले के रूप में काम करता था। बाहर से देखने में वह एक साधारण इंसान था, लेकिन उसके भीतर एक ऐसी आग सुलग रही थी, जो जल्द ही उसे सीरियल किलर बना देगी।
चंद्रकांत ने दो शादियां कीं। पहली शादी ज्यादा समय तक नहीं चली, और दूसरी शादी से उसकी पांच बेटियां हुईं। वह अपने परिवार से ज्यादातर दूर रहता था, और उसका जीवन अकेलेपन और गुस्से से भरा हुआ था। उसका कहना था कि बचपन में माता-पिता ने उसकी उपेक्षा की, जिसने उसके मन में गहरी नफरत की जड़ें बो दीं। यह गुस्सा बाद में उसकी हत्याओं का कारण बना।
पहली हत्या: बदले की आग
चंद्रकांत का आपराधिक जीवन तब शुरू हुआ जब 1988 में आजादपुर मंडी में उसका एक सहकर्मी सब्जी विक्रेता पंडित से झगड़ा हुआ। इस झगड़े में चंद्रकांत ने पंडित के हाथ पर चाकू से हमला कर दिया। पंडित की शिकायत पर उसे गिरफ्तार किया गया, लेकिन पुलिस हिरासत से रिहा होने के बाद उसने बदला लेने की ठानी। उसने पंडित से दोस्ती का नाटक किया और फिर उसकी हत्या कर दी। पंडित का सिर कभी नहीं मिला, और उसका शव लावारिस रह गया। यह मामला अनसुलझा रहा, लेकिन चंद्रकांत के अंदर का हत्यारा अब जाग चुका था।
1998 में चंद्रकांत ने अपनी पहली दर्ज हत्या की, जब उसने आदर्श नगर में मंगल उर्फ औरंगजेब की हत्या कर उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इस बार भी वह सबूतों के अभाव में 2002 में रिहा हो गया। इस रिहाई ने उसे और साहसी बना दिया, और उसने हत्याओं की एक खौफनाक श्रृंखला शुरू कर दी।
हत्या का तरीका: दोस्ती, विश्वास और फिर मौत
चंद्रकांत झा का हत्या करने का तरीका बेहद चालाक और क्रूर था। वह बिहार और उत्तर प्रदेश से आए प्रवासी मजदूरों को अपना निशाना बनाता था। पहले वह उनके साथ दोस्ती करता, उन्हें छोटी-मोटी नौकरियां दिलाने में मदद करता, और फिर छोटी-छोटी बातों जैसे चोरी, झूठ बोलने, मांसाहारी भोजन करने या नशा करने पर उनसे विवाद करता। इसके बाद वह उनका गला घोंटकर हत्या कर देता और शवों को टुकड़ों में काटकर दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में फेंक देता।
उसकी सबसे खौफनाक आदत थी तिहाड़ जेल के गेट नंबर 1 और 3 के बाहर शवों के टुकड़े फेंकना। वह शवों के साथ एक नोट छोड़ता, जिसमें दिल्ली पुलिस को भद्दी गालियां और चुनौती भरे शब्द लिखे होते, जैसे “तुम्हारा बाप+जीजाजी” या “हिम्मत है तो पकड़कर दिखा”। यह नोट्स पुलिस के लिए एक पहेली बन गए, और दिल्ली में दहशत का माहौल बन गया।
2003 से 2007 तक चंद्रकांत ने कई हत्याएं कीं, जिनमें शेखर, उमेश, गुड्डू, अमित, उपेंद्र और दिलीप शामिल थे। 2007 में दिलीप की हत्या उसने इसलिए की, क्योंकि वह मांसाहारी था, और यह चंद्रकांत को पसंद नहीं था। उसने शव को तिहाड़ जेल के गेट नंबर 1 के पास फेंक दिया।
तिहाड़ जेल और पुलिस को चुनौती
चंद्रकांत की हत्याओं का सबसे सनसनीखेज पहलू था उसका तिहाड़ जेल के बाहर शवों को फेंकना। यह कोई संयोग नहीं था। जांच में पता चला कि चंद्रकांत एक पुलिस हवलदार से नाराज था, जिसने तिहाड़ जेल में उसके साथ बदसलूकी की थी। इस बदले की आग में उसने तिहाड़ जेल को अपने अपराधों का केंद्र बनाया। वह शवों के सिर यमुना नदी में फेंक देता, ताकि शवों की पहचान मुश्किल हो जाए।
2006 और 2007 में तिहाड़ जेल के बाहर एक के बाद एक सिर कटी लाशें मिलने से दिल्ली में दहशत फैल गई। हर बार एक नोट, जिसमें पुलिस को चुनौती दी जाती थी। दिल्ली पुलिस के लिए यह एक अबूझ पहेली बन चुका था। लोग सवाल उठाने लगे कि आखिर यह सीरियल किलर कौन है, जो इतनी बेरहमी से हत्याएं कर रहा है और पुलिस को ठेंगा दिखा रहा है?
पुलिस की जांच और गिरफ्तारी
2007 दिल्ली के हौज खास इलाके में एक गहन जांच के बाद पुलिस ने उसे उस समय धर दबोचा, जब वह अपने किराए के मकान में छिपा हुआ था। चंद्रकांत की चालाकी और सबूत मिटाने की कला के बावजूद, पुलिस ने स्थानीय मुखबिरों, सीसीटीवी फुटेज, और उसके ठिकानों पर नजर रखकर उसे पकड़ लिया। उसकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उसके घर से हत्या में इस्तेमाल हथियार और अन्य सबूत बरामद किए, जिसने सीरियल किलर चंद्रकांत झा के अपराधों की श्रृंखला को उजागर किया।जांच में पता चला कि वह बेहद चालाक था और कानूनी पेचीदगियों को अच्छी तरह समझता था। उसकी अंग्रेजी भले ही कमजोर थी, लेकिन वह पुलिस को चकमा देने में माहिर था। जांच अधिकारी सुंदर सिंह यादव ने बताया कि चंद्रकांत का दिमाग इतना तेज था कि वह हर बार सबूत मिटाने में कामयाब हो जाता था।
चंद्रकांत के खिलाफ कुल 13 मामले दर्ज थे, जिनमें 7 हत्याएं शामिल थीं। 2013 में उसे तीन हत्याओं के लिए दोषी ठहराया गया। दो मामलों में उसे फांसी की सजा सुनाई गई, जिसे 2016 में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। एक मामले में उसे मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा मिली।
पैरोल और फिर फरारी
2023 में दिल्ली हाई कोर्ट ने चंद्रकांत को अपनी सबसे बड़ी बेटी की शादी के लिए 90 दिनों की पैरोल दी। लेकिन पैरोल की अवधि खत्म होने के बाद वह जेल वापस नहीं लौटा और फरार हो गया। दिल्ली पुलिस ने उस पर 50,000 रुपये का इनाम रखा और छह महीने की गहन तलाश के बाद जनवरी 2025 में उसे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया। वह बिहार भागने की फिराक में था।
पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज, परिवार और दोस्तों की निगरानी, और एक संदिग्ध मोबाइल नंबर के जरिए उसका पता लगाया। यह गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि चंद्रकांत समाज के लिए एक बड़ा खतरा था।
इंडियन प्रीडेटर: द बुचर ऑफ दिल्ली
चंद्रकांत झा की कहानी इतनी खौफनाक थी कि नेटफ्लिक्स ने 2022 में “इंडियन प्रीडेटर: द बुचर ऑफ दिल्ली” नाम से एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज बनाई। इस सीरीज में दिखाया गया कि कैसे एक साधारण सा दिखने वाला इंसान मानसिक रूप से बीमार होकर सीरियल किलर बन गया। यह सीरीज दिल्ली के तेजी से शहरीकरण और उसकी छाया में छिपे खतरों को भी उजागर करती है।
चंद्रकांत का मानसिक रोग
कई विशेषज्ञों का मानना है कि चंद्रकांत झा एक संभावित मनोरोगी था। छोटी-छोटी बातों पर उसका गुस्सा भड़क उठता था, जैसे किसी का मांसाहारी होना या झूठ बोलना। वह अपने शिकार को पहले दोस्त बनाता, उनका भरोसा जीतता, और फिर उनकी हत्या कर देता। उसकी क्रूरता और पुलिस को चुनौती देने की प्रवृत्ति उसे एक खतरनाक अपराधी बनाती थी।
समाज पर प्रभाव
चंद्रकांत झा की हत्याओं ने दिल्ली में प्रवासी मजदूरों के बीच दहशत पैदा कर दी थी। लोग अजनबियों पर भरोसा करने से डरने लगे थे। उसकी कहानी न केवल एक अपराध की कहानी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक परिस्थितियां किसी को अपराध की राह पर ले जा सकती हैं।
निष्कर्ष
चंद्रकांत झा, जिसे दिल्ली का कसाई कहा जाता है, एक ऐसा सीरियल किलर था, जिसने अपनी क्रूरता और चालाकी से पूरे देश को हिलाकर रख दिया। उसकी कहानी सस्पेंस और थ्रिलर से भरी है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि मानव मन की गहराइयों में कितना अंधेरा छिपा हो सकता है। दिल्ली पुलिस की मेहनत और नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री ने इस कहानी को दुनिया के सामने ला दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या समाज ऐसी घटनाओं से सबक ले पाएगा?
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