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सत्य घटना: एक भक्त की कहानी – गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तक से प्रेरित

रमई

भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में गीता प्रेस, गोरखपुर का विशेष स्थान है। 1923 में स्थापित, गीता प्रेस ने हिंदू धर्म के साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी पुस्तकें, जैसे श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीरामचरितमानस, और विभिन्न भक्ति कथाएँ, न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को भी प्रेरित करती हैं। इस लेख में, हम गीता प्रेस की पुस्तक “आदर्श भक्त (सात कथाएँ)” से प्रेरित होकर एक सत्य घटना पर आधारित एक भक्त की कहानी प्रस्तुत करेंगे। यह कहानी भक्ति, विश्वास और ईश्वर की कृपा की शक्ति को दर्शाती है

कहानी: भक्त रमई की अनन्य भक्ति

पृष्ठभूमि

रमई एक साधारण गाँव का निवासी था, जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के पास एक छोटे से गाँव में रहता था। वह एक गरीब किसान था, जिसके पास न तो धन था और न ही कोई विशेष शिक्षा। लेकिन उसका हृदय भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति से भरा था। रमई की दिनचर्या सादगी भरी थी—सुबह उठकर वह गीता के कुछ श्लोक पढ़ता, भगवान कृष्ण की मूर्ति की पूजा करता, और फिर अपने खेतों में काम करने चला जाता। उसकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वह हर कार्य को भगवान को समर्पित करके करता था।

सत्य घटना की शुरुआत

एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। खेत सूख गए, नदियाँ और तालाब बंजर हो गए। गाँव के लोग परेशान थे, क्योंकि उनकी आजीविका खेती पर निर्भर थी। रमई भी इस आपदा से प्रभावित था, लेकिन उसका विश्वास डगमगाया नहीं। वह हर दिन अपनी छोटी सी मिट्टी की मूर्ति के सामने बैठकर भगवान कृष्ण से प्रार्थना करता, “हे कृष्ण! आप मेरे नाथ हैं, मेरे गाँव को इस संकट से उबारें।” उसकी प्रार्थना में कोई स्वार्थ नहीं था; वह अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे गाँव के लिए मंगल कामना करता था।

एक दिन, जब सूखे ने गाँव को पूरी तरह जकड़ लिया था, रमई ने गीता प्रेस की पुस्तक “श्रीमद्भगवद्गीता” में पढ़ा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश दिया था। उसने सोचा, “मुझे भी अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए और भगवान पर भरोसा रखना चाहिए।” उसने गाँव वालों को एकजुट किया और एक सामूहिक भक्ति सभा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। गाँव वालों ने उसका मज़ाक उड़ाया, क्योंकि उन्हें लगता था कि सूखे का समाधान केवल बारिश है, न कि पूजा-पाठ। लेकिन रमई ने हार नहीं मानी।

भक्ति सभा और चमत्कार

रमई ने गाँव के मंदिर में एक भक्ति सभा का आयोजन किया। उसने गीता प्रेस की पुस्तक “भक्ति भक्त भगवान” से प्रेरणा लेकर भगवान कृष्ण के भजनों का गायन शुरू किया। धीरे-धीरे कुछ गाँव वाले इस सभा में शामिल होने लगे। रमई की भक्ति इतनी सच्ची थी कि उसका गायन सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो गए। सभा के तीसरे दिन, जब रमई “हरे कृष्ण, हरे राम” का कीर्तन कर रहा था, आकाश में बादल छाने लगे। गाँव वालों को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन कुछ ही घंटों में मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। खेत फिर से हरे-भरे होने लगे, और गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई।

यह घटना गाँव के लिए एक चमत्कार थी। लोग रमई की भक्ति की प्रशंसा करने लगे। लेकिन रमई ने इसका श्रेय केवल भगवान कृष्ण को दिया। उसने कहा, “मैं तो केवल एक साधारण भक्त हूँ। यह सब मेरे नाथ की कृपा है।” इस घटना ने गाँव वालों के मन में भक्ति और विश्वास को और गहरा कर दिया।

गीता प्रेस का योगदान

गीता प्रेस, गोरखपुर ने ऐसी कई कहानियों को अपनी पुस्तकों में संकलित किया है, जो भक्तों के जीवन में ईश्वर की कृपा को दर्शाती हैं। “आदर्श भक्त (सात कथाएँ)” जैसी पुस्तकें न केवल धार्मिक साहित्य का हिस्सा हैं, बल्कि ये जीवन को प्रेरणा और दिशा देने का कार्य भी करती हैं। गीता प्रेस की स्थापना सेठ जयदयाल गोयंदका ने 1923 में की थी, और तब से यह संस्था 90 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन कर चुकी है, जिसमें 16.57 करोड़ प्रतियाँ “कल्याण” पत्रिका की हैं।

गीता प्रेस की पुस्तकें सस्ती, सुंदर प्रिंटिंग और बड़े फ़ॉन्ट के लिए जानी जाती हैं, जिससे हर आयु वर्ग के लोग इन्हें आसानी से पढ़ सकते हैं। “श्रीमद्भगवद्गीता (साधक संजीवनी)” जैसी पुस्तकें, जो स्वामी रामसुखदास जी द्वारा लिखित हैं, सामान्य जन से लेकर विद्वानों तक को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।

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भक्ति का महत्व

रमई की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में वह शक्ति है जो असंभव को संभव बना सकती है। गीता प्रेस की पुस्तकों में वर्णित भक्ति के सिद्धांत, जैसे अनन्य भक्ति और कर्मयोग, जीवन में संतुलन और शांति लाने में मदद करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यति। (गीता 4:33)

अर्थात, सभी कर्म ज्ञान में समाप्त होते हैं। रमई ने इसी सिद्धांत को अपनाया और अपने कर्म को भगवान को समर्पित किया, जिसके फलस्वरूप उसे और पूरे गाँव को ईश्वर की कृपा प्राप्त हुई।

गीता प्रेस का प्रभाव

गीता प्रेस ने न केवल धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन किया, बल्कि भारतीय समाज में नैतिकता और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने में भी योगदान दिया। इसकी पत्रिका “कल्याण” ने लाखों लोगों को भक्ति और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री में वृद्धि, खासकर कोरोना काल के बाद, यह दर्शाती है कि लोग धार्मिक साहित्य की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं।

निष्कर्ष

रमई की कहानी एक ऐसी सत्य घटना है जो यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास से कोई भी संकट दूर किया जा सकता है। गीता प्रेस, गोरखपुर की पुस्तकों ने ऐसी अनगिनत कहानियों को संजोया है, जो हमें जीवन के कठिन पलों में प्रेरणा देती हैं।

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